अर्जुन उवाच। संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि । यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥5.1॥
अर्जुन का यह प्रश्न दर्शाता है कि वह भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों को समझने का प्रयास कर रहा था। अर्जुन कहता है कि श्रीकृष्ण एक ओर तो कर्मों का त्याग करने की बात करते हैं, दूसरी ओर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इन दोनों में से कौन-सा मार्ग उसके लिए अधिक कल्याणकारी होगा, यह स्पष्ट नहीं है। यहाँ अर्जुन ने एक महत्वपूर्ण बात कही है कि एक ही व्यक्ति दोनों का अनुष्ठान एक साथ नहीं कर सकता। उसे लगता है कि श्रीकृष्ण कर्मसंन्यास और कर्मयोग के बीच में उसे चुनने को कह रहे हैं। परंतु वास्तव में श्रीकृष्ण यह समझाना चाहते थे कि ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक हैं। अतः अर्जुन ज्ञान के अभाव में इन्हें पृथक-पृथक समझ रहा था।
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