Monday, October 16, 2023

गीता पर भाष्य


संस्कृत साहित्य की परम्परा में उन ग्रन्थों को भाष्य (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। भारतीय दार्शनिक परंपरा में किसी भी नये दर्शन को या किसी दर्शन के नये स्वरूप को जड़ जमाने के लिए जिन तीन ग्रन्थों पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करना पड़ता था (अर्थात् भाष्य लिखकर) उनमें भगवद्गीता भी एक है (अन्य दो हैं- उपनिषद् तथा ब्रह्मसूत्र)। [4]


गीता पर अनेक अचार्यों एवं विद्वानों ने टीकाएँ की हैं। संप्रदायों के अनुसार उनकी संक्षिप्त सूची इस प्रकार है :


(अ) अद्वैत - शांकराभाष्य, श्रीधरकृत सुबोधिनी, मधुसूदन सरस्वतीकृत गूढ़ार्थदीपिका।

(आ) विशिष्टाद्वैत -

(१) यामुनाचार्य कृत गीता अर्थसंग्रह, जिसपर वेदांतदेशिककृत गीतार्थ-संग्रह रक्षा टीका है।

(२) रामानुजाचार्यकृत गीताभाष्य, जिसपर वेदांतदेशिककृत तात्पर्यचंद्रिका टीका है।

(इ) द्वैत - मध्वाचार्य कृत गीताभाष्य, जिसपर जयतीर्थकृत प्रमेयदीपिका टीका है, मध्वाचार्यकृत गीता-तात्पर्य निर्णय।

(ई) शुद्धाद्वैत - वल्लभाचार्य कृत तत्वदीपिका, जिसपर पुरुषोत्तमकृत अमृततरंगिणी टीका है।

(उ) कश्मीरी टीकाएँ - १. अभिनवगुप्तकृत गीतार्थ संग्रह। २. आनंदवर्धनकृत ज्ञानकर्मसमुच्चय।

इनके अतिरिक्त महाराष्ट्र संत ज्ञानदेव या ज्ञानेश्वरकृत भावार्थदीपिका नाम की टीका (१२९०) प्रसिद्ध है जो गीता के ज्ञान को भावात्मक काव्यशैली में प्रकट करती है। महाराष्ट्र मे महानुभाव संप्रदाय के संस्थापक चक्रधर स्वामी इनके महानुभाव तत्वज्ञान पर आधारित मुरलीधर शास्त्री आराध्ये इन्होने रहस्यार्थ चंद्रिका नाम की गीता टीका लिखी है। इसके सीवा महानुभाव संप्रदाय मे और भी 52 गीता टीका उपलब्ध है। वर्तमान युग में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलककृत गीतारहस्य टीका, जो अत्यंत विस्तृत भूमिका तथा विवेचन के साथ पहली बार १९१५ ई। में पूना से प्रकाशित हुई थी, गीता साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उसने गीता के मूल अर्थों को विद्वानों तक पहुँचाने में ऐसा मोड़ दिया है जो शंकराचार्य के बाद आज तक संभव नहीं हुआ था। वस्तुत: शंकराचार्य का भाष्य गीता का मुख्य अर्थ ज्ञानपरक करता है जबकि तिलक ने गीता को कर्म का प्रतिपादक शस्त्र सिद्ध किया है।


गीताभाष्य - आदि शंकराचार्य

गीताभाष्य - रामानुज

गूढार्थदीपिका टीका - मधुसूदन सरस्वती

सुबोधिनी टीका - श्रीधर स्वामी

ज्ञानेश्वरी - संत ज्ञानेश्वर (संस्कृत से गीता का मराठी अनुवाद)

गीतारहस्य - बालगंगाधर तिलक

अनासक्ति योग - महात्मा गांधी

Essays on Gita - अरविन्द घोष

ईश्वरार्जुन संवाद- परमहंस योगानन्द

गीता-प्रवचन - विनोबा भावे

गीता तत्व विवेचनी टीका - जयदयाल गोयन्दका

भगवदगीता का सार- स्वामी क्रियानन्द

गीता साधक संजीवनी (टीका)- स्वामी रामसुखदास

गीता हृदय-यति राज दण्डी स्वामी सहजानंद सरस्वती

श्रीमद्भगवद्गीता (आध्यात्मिक गीता के नाम से प्रसिद्ध) - योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी व श्री भूपेद्रनाथ सान्याल जी की टीका और गोपीनाथ कविराज जी द्वारा भूमिका [5]

भगवद्गीता पर उपलब्ध सभी भाष्यों में श्री जयदयाल गोयन्दका की तत्व विवेचनी सर्वाधिक लोकप्रिय तथा जनसुलभ है। इसका प्रकाशन गीताप्रेस के द्वारा किया जाता है। आजतक इसकी 10 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं।

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