Monday, October 16, 2023

Arjun ke Solah Prashan| अर्जुन के सोलह प्रश्न

महाभारत के भीष्म पर्व (जिसमें भगवद्गीता सम्मिलित है) के प्रारम्भ में युद्धभूमि पर अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से जीवन, धर्म, कर्तव्य, और युद्ध को लेकर कई गहन प्रश्न पूछे थे, जिनकी संख्या 16 मानी जाती है, लेकिन प्रामाणिक महाभारत या गीता में इन प्रश्नों की गिनती या स्पष्ट सूची सामान्यतः नहीं मिलती। 

क्रमप्रश्न का सारअध्याय और श्लोक
1स्थिरप्रज्ञ व्यक्ति के लक्षण क्या हैं?अध्याय 2, श्लोक 54
2ज्ञान कर्म से श्रेष्ठ है तो युद्ध क्यों करूं?अध्याय 3, श्लोक 1
3मनुष्य को पाप कर्म के लिए कौन प्रेरित करता है?अध्याय 3, श्लोक 36
4आप विवस्वान के बाद जन्मे फिर उन्हें कैसे गीता का ज्ञान दिया?अध्याय 4, श्लोक 4
5त्याग और कर्म योग में श्रेष्ठ कौन?अध्याय 5, श्लोक 1
6मन को नियंत्रित करना कठिन क्यों है?अध्याय 6, श्लोक 34
7योग का मार्ग बीच में छोड़ने वाले का क्या होता है?अध्याय 6, श्लोक 37
8ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव, अधियज्ञ क्या हैं?अध्याय 8, श्लोक 1-2
9आपके ऐश्वर्य का विस्तार बताइएअध्याय 10, श्लोक 16
10आपका विराट रूप दिखाइएअध्याय 11, श्लोक 3
11आप कौन हैं, आपके वास्तविक स्वरूप क्या है?अध्याय 11, श्लोक 31
12साकार और निराकार उपासक में श्रेष्ठ कौन है?अध्याय 12, श्लोक 1
13क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ, प्रकृति और पुरुष क्या हैं?अध्याय 13, श्लोक 1
14तीन गुण से परे व्यक्ति के लक्षण क्या हैं?अध्याय 14, श्लोक 21
15श्रद्धा के तीन प्रकार का विवेचनअध्याय 17, श्लोक 1
16संन्यास और त्याग में अंतर क्या है?अध्याय 18, श्लोक 1


1. स्थिरप्रज्ञ व्यक्ति के लक्षण (अध्याय 2, श्लोक 54)  
अर्जुन उवाच - स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव। स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्॥

2. ज्ञान कर्म से श्रेष्ठ, फिर युद्ध क्यों? (अध्याय 3, श्लोक 1)  
अर्जुन उवाच - ज्यायसी चेत् कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन। तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥

3. पाप कर्म के लिए प्रेरणा क्यों? (अध्याय 3, श्लोक 36)  
अर्जुन उवाच - अथ केन प्रयुक्तो ’यं पापं चरति पूरुषः। अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥

4. विवस्वान के बाद ज्ञान कैसे दिया? (अध्याय 4, श्लोक 4)  
अर्जुन उवाच - अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः। कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति॥

5. त्याग और कर्म योग में श्रेष्ठ कौन? (अध्याय 5, श्लोक 1)  
अर्जुन उवाच - संन्यासं कर्मयोगं च नि:श्रेयसमिति श्रुतः। तयोः यत्कर्म यत: कार्यं क्रियाविशेषमाह तदा॥

6. मन नियंत्रित करना कठिन क्यों? (अध्याय 6, श्लोक 34)  
अर्जुन उवाच - चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्। तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥

7. योग का मार्ग छोड़ने का परिणाम? (अध्याय 6, श्लोक 37)  
अर्जुन उवाच - अयतिः श्रद्धयोपेतः योगाच्चलितमानसः। अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति॥

8. ब्रह्म, अधिभूत आदि क्या हैं? (अध्याय 8, श्लोक 1-2)  
अर्जुन उवाच - किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम। अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते॥  
अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन। प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः॥

9. आपके ऐश्वर्य का विस्तार बताइए (अध्याय 10, श्लोक 16)  
अर्जुन उवाच - विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन। भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्॥

10. आपका विराट रूप दिखाइए (अध्याय 11, श्लोक 3)  
अर्जुन उवाच - अनेकवक्त्रनयनं अनेकदंष्ट्रितोर्ध्व नीतरुचि। अनेकसर्पोद्भूतं मुखमव्यक्तमिदं वृणु।

11. आप कौन हैं? वास्तविक स्वरूप क्या? (अध्याय 11, श्लोक 31)  
अर्जुन उवाच - किमेतद् व्याप्यस्त्वमस्य विश्वमनन्तरूप। इदं त्वं जगदेकं नानावद्भिः पोषितमन्नम्॥

12. साकार और निराकार उपासक में श्रेष्ठ कौन? (अध्याय 12, श्लोक 1)  
अर्जुन उवाच - एवं सततयुक्ता ye भक्तास्त्वां पर्युपासते। ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमा:।

13. क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ, प्रकृति, पुरुष क्या? (अध्याय 13, श्लोक 1)  
अर्जुन उवाच - प्रकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च। एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव॥

14. तीन गुण से परे व्यक्ति के लक्षण? (अध्याय 14, श्लोक 21)  
अर्जुन उवाच - कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो। किमाचारः कथं चेतां स्त्रीन्गुणानतिवर्तते॥

15. श्रद्धा के तीन प्रकार? (अध्याय 17, श्लोक 1)  
अर्जुन उवाच - ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः। तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः॥

16. संन्यास और त्याग में अंतर? (अध्याय 18, श्लोक 1)  
अर्जुन उवाच - संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्। त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन॥


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